Thursday, September 18, 2008

[Kumauni-Garhwali] Digest Number 1997


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1. बोली कु लोप होन्दà
   Posted by: "Mukund Dhoundiyal" mldhoundiyal@grouply.com mldhoundiyal
   Date: Wed Sep 17, 2008 10:12 pm ((PDT))

*म्यारा  पर्वतीय नौनिहालों**   *
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*ये  भूलौ.  रे*
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*अपना आपस माँ  जब भी वार्तालाप  करदां  ता  अप्नि भाषा कु प्रयोग कारा  रे...*
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*हमारी बोली कु लोप होन्दा जाणु च रे*
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*  ये  नौनो ... *
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*क्वी  भी "जाती" अपनी बोली का  भरोसा  ही  जिन्दा रै  सकदी ....  *
*बिना बोली का  मनिख्यों की पछ्याण नि च  और अप्नि पछ्याण का वास्ता  "बोली" कु
जिंदु रेणु ज़रूरी च *
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बोली थैं जिंदु रख्णु  पोढ़दू.. ....

जै  की  बोली भाषा माँ  जतना  भी मिठास ह्वेइली  ...वीं बोली का लोगु की उतना
ही इज्ज़त  हवेली  *

*दिन भर हमारू  यु प्रयास रेणु  चैयंदु  की हम वार्तालाप अपनी सीधी सरल बोली
माँ  करां..*
*गद्वोली आदिम गद्वोली माँ बोलीं ......और  कुमाओं  आदिम कुमाओं बोली माँ
बोल्यां..    *
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*गड्वाली अर्र कुमैयाँ  बोली  लोगो की समझ माँ आसानी से  एई  जांदी *
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*यु द्वि बोली उत्तराँचल की ही ता छीन और  यु माँ फर्क  मामूली  च..*
*शुरू शुर माँ थोड़ा सी दिक्कत महसूस जरूर  होली लेकिन एक द्वि वार्तालाप कारन
से वू भी हल्कू महसूस होलू जरूर .....*
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*यु मेरु विश्वास च.. *
*ता भूलों और नौनियालो आज और अभी बीटी यु भलु काम शुरू कैरी दीयो
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*और हाँ एक बात  और विशेष च की हमारी भाषा माँ जख एक मिठास च  ताखी  वेई माँ
अपना विचार की सरलता भी च  और सोम्य भी  साथ ही साथ गोपनीयता भी ...*

*जरा  एक दों.. अपनी बोली बोला  ता  सही...फ़िर   देखो  कतना   मिठास महसूस
होंदी   और कत्गा अछू लगदु  और कत्गा  आनंद औंदु
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