Tuesday, September 9, 2008

[PGG-Regd Trust] Digest Number 1790



'माँस कम खाओ,ग्लोब

Posted by: "Subhash Kandpal"
subhash@tisindia.com   subhash4784

Tue Sep 9, 2008 2:38 am (PDT)

संयुक्त राष्ट्र से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक राजेंद्र पचौरी ने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए लोगों को माँसाहारी भोजन की मात्रा में कमी लाने पर विचार करना चाहिए.

डॉक्टर पचौरी लंदन में सोमवार को एक स्पीच देने वाले हैं जिसमें वे ये आह्वान करेंगे.

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े बताते हैं कि वाहनों की तुलना में मीट के उत्पादन से वातावरण में ज़्यादा मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.

डॉक्टर पचौरी को हाल ही में नोबेल पुरस्कार विजेता आईपीसीसी का दोबारा अध्यक्ष चुना गया है. आईपीसी कई देशों की सरकारों के लिए पर्यावरण संबंधी आँकड़े उपलब्ध करवाती है.

संयुक्त राष्ट्र के संगठन आईपीसीसी (इंटरगर्वन्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) को पिछले साल नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था.

डॉक्टर पचौरी ने बीबीसी से बातचीत में बताया, "संयुक्त राष्ट की खाद्य और कृषि संस्था (एफ़एओ) का अनुमान है कि विश्व में जितनी ग्रीनगाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, उसमें से माँस उत्पादों के व्यवसाय से निकलने वाली गैसों का प्रतिशत 18 फ़ीसदी है. इसलिए मैं ये बात उठाना चाहता हूँ कि ग्लोबल वार्मिंग कम करने के उपायों में से एक उपाय अपना खान-पान बदलना हो सकता है."

एफ़एओ की ओर से बताया गया है कि माँस उत्पाद व्यवसाय के विभिन्न चरणों के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है- जंगलों की कटाई, खाद बनाना, वाहनों में ईंधन का इस्तेमाल, जानवरों से होने वाला उत्सर्जन.

इसमें से कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे ज़्यादा उत्सर्जन जंगलों की कटाई से होता है.

खान-पान बदलने की सलाह पर डॉक्टर पचौरी का कहना था कि ये बहुत निजी मामला है.

उनका कहना था, "मैं ऐसा कोई नियम बनाने के पक्ष में नहीं हूँ. लेकिन अगर कार्बन उत्सर्जन को लेकर कोई क़ीमत लगाई जाए तो मीट की क़ीमत बढ़ जाएगी और लोग माँसाहारी भोजन कम ख�¤

 
 

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