Monday, April 7, 2008

[pahadi] Digest Number 520

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1.

Rejaang_La The Bettle Field of Kumaon- Charlie Against China 1962..

Posted by: "Lalit M Nainwal" lalitnainwal@yahoo.com   lalitnainwal

Mon Apr 7, 2008 2:31 am (PDT)

भारतीय सैनिकों ने रचा था इतिहास
Nov 17, 07:05 pm

नई दिल्ली। सन 1962 की लड़ाई में चीन के साथ युद्ध में भारतीय सेना को जहां कई मोर्चो पर हार का सामना करना पड़ा, वहीं लद्दाख के चुशूल सेक्टर में उसने शौर्य का ऐसा इतिहास रचा कि तमाम प्रयासों के बावजूद चीनी सैनिक रेजांगला पर कब्जा नहीं कर पाए।
भारतीय सेना के 1962 के युद्ध आंकड़ों के अनुसार चीनी आक्रमण के चलते 24 अक्टूबर 1962 को रेजांगला की सुरक्षा का जिम्मा कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी को सौंप दिया गया। भारतीय सैनिक सुरक्षात्मक तैयारियों में लगे थे कि अचानक 18 नवंबर को पौ फटने से पहले चीनी सेना ने रेजांगला पर जबर्दस्त हमला कर दिया। रेजांगला लद्दाख के चुशूल सेक्टर में 18 हजार फुट की बर्फीली ऊंचाई पर स्थित है। वहां
पानी भी जम जाता है। मातृभूमि की सीमाओं की रक्षा की जिद ठाने वहां तैनात भारतीय जवानों का लहू नहीं जमा। उन्होंने चीनी सेना का ऐसा मुकाबला किया कि देखते ही देखते चार्ली कंपनी, सात और आठ नंबर प्लाटून तथा मोटर सेक्शन की जबर्दस्त जवाबी कार्रवाई में सैकड़ों चीनी सैनिक ढेर हो गए।
यह जबर्दस्त लड़ाई कई घंटों तक चली। रेजांगला के नाले चीनी सैनिकों की लाशों से भर गए। इस हमले में विफल हो जाने पर चीनियों ने फिर से जबर्दस्त हमला बोला फिर भी वे कामयाब नहीं हुए। इसके बाद चीनियों ने तीसरी बार कई ओर से धावा बोला। कई जगह उन्हें अपने ही सैनिकों की लाशों के ऊपर से गुजरना पड़ा। भारतीय जवान जमकर लड़े। गोला बारूद खत्म हो जाने पर वे अपने मोर्चो से बाहर निकल आए और
निहत्थे ही स्वचालित राइफलधारी चीनी सैनिकों से भिड़ गए।
भारतीय सेना के पहलवान सिंहराम ने कई चीनी सैनिकों को चट्टान पर पटक कर मार डाला। घंटों तक चली इस लड़ाई में भारतीय सेना के 114 अधिकारी और जवान शहीद हो गए। इसके बावजूद चुशूल पर चीनी सैनिक कब्जा नहीं कर पाए। बहादुर हवलदार रामकुमार के शरीर में नौ गोलियां लगीं। इसके बावजूद दुश्मन को झांसा देकर वह लुढ़कते-लुढ़कते छह मील की दुर्गम बर्फीली दूरी तय कर अपने बटालियन मुख्यालय पहुंचने
में कामयाब हो गए।
बहादुर भारतीय सैनिकों की तुलना में मरने वाले चीनी सैनिकों की तादाद काफी अधिक थी। भारतीयों की बहादुरी को देखकर चीनी सैनिक भी दंग रह गए। जाते-जाते वह हमारे शरीद सैनिकों के पार्थिव शरीरों को सम्मान के साथ कंबलों से ढक गए तथा उनकी संगीनें उनके शरीरों के पास खड़ी कर गए। 11 फरवरी 1963 को 110 रेडक्रास अधिकारियों और भारतीय सेना के जवानों तथा अधिकारियों का दल चुशूल सेक्टर पहुंचा
जहां प्रकृति ने बहादुरी के इतिहास को अब भी पूरी तरह सहेज कर रखा था। इसके बाद वहां तत्कालीन सेना प्रमुख टी एन रैना भी पहुंचे। बेहद सर्द इलाका होने के कारण उन्हें लड़ाई के सभी दृश्य सुरक्षित मिले। शहीद भारतीय सैनिकों के शव बर्फ में जम चुके थे, तब भी अपने हथियार थामे हुए थे। यह दृश्य देखकर सेना अध्यक्ष बिलख-बिलख कर रो पड़े।
क्षेत्र से 96 अधिकारियों और जवानों के शव बरामद हुए। बाकी शव अगली कार्रवाई में मिले। मेजर शैतान सिंह का शव उसी समय विमान के जरिए जोधपुर पहुंचाया गया। वहां पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। बाकी शवों का अंतिम संस्कार चुशूल युद्धक्षेत्र में ही कर दिया गया जहां उनकी स्मृति में अब एक स्मारक बना है।

" No Power On Earth is as Mightiest as a Good Will."

"Will Of God Prevails"
< Lalit Nainwal >

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